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नया लेखक

सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
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मुझे पढने का बहुत शौक है | कहानी हो काव्य हो गद्य या फिर व्यंग | एक दिन एक समाचार पत्र में छपी एक कहानी को पढ़ रहा था, जो किसी नए लेखक ने लिखी थी | कहानी तो वाकई बहुत बढ़िया थी उसकी सभी प्रशंसा कर रहे थे | उस नए लेखक की प्रशंसा सुनकर मेरे मन में भी एक विचार आया | क्यों न मई भी कोई बढ़िया सी कहानी लिखू जिसे लोग पढ़े और मेरी भी खूब प्रशंसा करें |
मैंने अपने मन में दृढ संकल्प लिया की कुछ भी हो जाये मै कहानी तो लिखूंगा ही इसके पहले मुझे पढने का शौक तो था ही | आज से लिखने का चस्का भी लग गया | मै कहानी लिखने जा रहा था पर मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था की कैसी कहानी लिखू | जासूसी रोमांटिक या कोई और | मेरे काफी सोचने के बाद मैंने निर्णय किया की यह मेरी पहली कहानी है तो मै रोमांटिक कहानी लिखता हूँ |
अब तो मै बड़ा खुश था की एक काम तो मैंने कर ही लिया है | अब बरी थी थीम की कहानी का प्रकार तो मैंने निश्चित कर लिया था पर अब थीम कहा से लाऊं | ये तो बहुत ही कठिन काम था | फिर अचानक मुझे ख्याल आया क्यों न हिंदी फिल्मो से प्रेरणा ली जाये | फिर क्या था एक एक करके मैंने रोमांटिक हिंदी फिल्मो को देखना शुरू कर दिया |बहुत सारी फिल्मे देखने के बाद मैंने एक थीम पा ही ली | अब मेरे मन में लड्डू फूटने लगे मुझे एहसाश हुआ की लोग मुझे बधाइयाँ दे रहे है | खुले दिल से मेरी प्रशंसा कर रहे है |
सहसा मेरा ध्यान किसी आवाज से भंग हुआ तो देखा बिल्ली थी| मुझे उस बिल्ली पर बड़ा गुस्सा आया पर मै उसका कर ही क्या सकता था | वो तो अपना कम करके जा चुकी थी |अब मै थीम के साथ कहानी लिखने बैठ गया | पर फिर से मै फंस गया अब बात थी किरदारों के नाम की | मेरी कहानी की शुरुवात में ही तीन चार नामो की जरुरत थी | लेकिन मै नाम सोंच ही नहीं पा रहा था | तो मैंने सोंचा चलो थोडा विश्राम कर लिया जाये शायद तब तक कोई नाम भी स्मरण हो आयें |
मै जाकर अपने बिस्तर पर लेट गया | मै लेता ही था की मेरी नजर सामने वाली दीवार पर गयी | जहाँ एक तस्वीर लगी थी जो मेरे कालेज टाइम की थी | वो एक ग्रुप फोटो थी | तभी मेरे मन में एक अच्छा सा विचार कौंधा क्यों न मै किरदारों के नाम अपने कालेज के दोस्तों के नाम पर रखू | और कहानी की नायिका का नाम अपने कालेज की उस लड़की के नाम पर जिसके दीवाने पुरे कालेज के लड़के थे | उसके बाद मेरे मन में एक और सुन्दर विचार | क्यों न नायक नाम मै अपने ही नाम पर रखूं | तभी कमरे में मेरी पत्नी ने प्रवेश किया और आते ही शुरू हो गयी कितनी देर से भोजन पका रही हूँ | कोई नहीं है इस घर में जो मेरा ख्याल करे | बताओ बच्चा रो रहा है उसके चुप कराऊँ या अन्य घर के काम करूँ | मै बेचारा क्या करता चुपचाप पड़ा रहा | मै भी जनता था श्रीमती जी किसे सुना रही है और मै है ही कौन हम तीनो के अलावा इस घर में | अब रात हो गयी थी | तो मैंने मेरा मूड भी ठीक नहीं है मै कल लिखूंगा | कल रविवार भी है छुट्टी का दिन है आराम से लिखूंगा | और फिर मै भोजन करके सो गया
अगली सुबह छुट्टी का दिन होने के बावजूद मै जल्दी उठ गया | श्रीमती जी ने कहा अरे वाह अज छुट्टी के दिन भी आप जल्दी उठ गए | क्या बात है कही घुमाने ले चल रहे है क्या | मैंने बड़ी शालीनता और तहजीब से समझ्हाया अरे भाई मै तो ऐसे ही उठ गया रोज की तरह | उसने कहा अच्छा | अभी बच्चा सो रहा है जरा उसका ध्यान रखना मुझे बहुत काम है आज | पर कुछ तो है आपका चेहरा आज खिला खिला सा है | आखिर मैंने बता ही दिया की आज मै एक कहानी लिख रहा हूँ | जो अख़बार में छपेगी मेरा नाम पूरी दुनिया में होगा | उन्होंने कहा तो ये बात है जरा मुझे दिखाना क्या कहानी लिखी है आपने | मैंने कहा अभी लिखी नहीं है लिखूंगा | ओह ! ठीक है | जब लिख जाये तो सबसे पहले मुझे ही पढाना | उन्होंने बड़े अधिकार से कहा | मुझे हामी भरनी ही पड़ी |
फिर क्या था बैठ गया मै कहानी लिखने | मेरी पहली कहानी थी जिसका नायक मै खुद था | खूब बढ़ा चढ़ाकर लिखा था अपने बारे में | और नायिका एक ऐसी लड़की थी जो पुरे कालेज में ब्यूटी क्वीन के नाम से मशहूर थी | वास्तविकता में तो मैंने कभी बात तक न की थी उससे | लेकिन वह री किस्मत ऐसा मौका मुझे मिला था एक खूबशूरत लड़की का हीरो बनने का | मैंने रोमांटिक फिल्मो में जितनी भी रोमांटिक सीन देखे थे एक एक करके समाहित करने शुरू कर दिए | मै अपनी कहानी में खो सा गया था | ऐसा लग रहा था ये कहानी नहीं वास्तविकता है | अब अगर लव स्टोरी है तो खलनायक भी होने चाहिए थे | तो मैंने अपने दोस्तों को बना दिया खलनायक | फिर क्या था धीरे धीरे अपने पुरे कालेज के लोगो के नाम अपनी कहानी में प्रविष्ट कर दिए | कहानी लिखने का अनुभव ही बड़ा रोमांचित करने वाला था |
मैंने कहानी तो लगभग पूरी कर दी थी और अब क्लाइमेक्स का टाइम था जिसमे नायक नायिका की जुदाई का मार्मिक वर्णन करना था और मैंने किया भी | कहानी अब पूरी हो गयी थी | मैंने अपनी कहानी का का शीर्षक रखा :> एक सच्ची प्रेम कथा |
मैंने अपनी पत्नी से कहा अजी सुनती हो मेरी कहानी पूरी हो गयी है | तो बहुत ही शीघ्रता से वो आयी और कहा अब वादा पूरा करो | मै असमंजस में पड़ गया कौन सा वादा – मने पूछा | बड़े भुलक्कड़ हो गए हो जी आज सुबह ही तो किया था | इतनी जल्दी भूल गए | मुझे सोंच में पड़ता देख उन्होंने कहा अरे यार कहानी पढवाने का | तब जाके मेरी जन में जन आयी | मैंने कहा ओह तो ये ऐसे बोलो न | तुम तो जानती ही हो मेरी राइटिंग कितनी माशाल्ला है | मई टाइप करा देता हूँ | तुम कल पढ़ लेना | तो उन्होंने हाँ कर दी |
शाम ७ बजे से ११ बजे तक मैंने टाइपिंग का काम निपटा दिया | बेडरूम में गया तो देखा मैडम सो गयी थी | मैंने भी टाइप वाले पेपर बेद पर सिरहाने रख दिए और मई भी सो गया |
सुबह कुछ देर से उठा नहा धोकर तैयार हुआ और आफिस जाते जाते श्रीमती जी से कह दिया की कहानी के पेपर बेद के सिरहाने रखे है पढ़ लेना | आफिस में मैंने सबको बताया की मैंने एक सुन्दर सी कहानी लिखी है | जो अखबार में छपेगी | आप सब लोग पढ़ना | मेरे साथी तो भौचक्के रह गए | आज तो बहुत ही खुश था |
आफिस में छुट्टी होने के बाद मई जल्दी ही घर की और चल दिया | रस्ते में सोचता जा रहा था |आज तो श्रीमती जी बहुत खुश हुई होगी | आज तो उन्हें पता चल ही गया होगा की मई जीनियस हूँ | मन ही मन मै अपने आप को मुन्सी प्रेमचंद्र का उत्तराधिकारी समझने लगा था |
मुझे पता ही नहीं चला मै कब घर पहुँच गया | डोरबेल बजाई तो दरवाजा खुला सामने श्रीमती जी थी | मेरा सीना आज चौड़ा था पर वो शांत थी | मैंने सोंचा अभी चाय लायेंगी तब मेरी प्रशंसा जरुर करेंगी | पर आज तो वो चाय भी नहीं लाई और रसोईघर की बजाय बेडरूम की और प्रस्थान कर गयी | मै समझ गया किसी कारन वश नाराज है पर क्यों यह मेरी समझ से परे था | मेरे से विचार आज तो उन्हें खुश होना चाहिए था | आखिरकार मै हिम्मत जुटा कर बेडरूम में गया तो देखा श्रीमती जी बेड पर लेती हुई थी और शायद रो रही थी | मै उनके पास जाकर बैठ गया और और पूछा क्या हुआ | वो नहीं बोली मैंने फिर दोहराया अरे क्या हुआ उन्होंने फिर कोई उत्तर नहीं दिया | मैंने फिर कहा कुछ बतायेंगी भी | अबकी बार पूछने पर बताने के बजाय और जोर से रोने लगी और फिर बोली | अगर आप किसी और से ही प्यार करते थे तो मुझसे विवाह क्यों किया | मै कुछ समझा क्या कहना चाहती हो तुम मैंने विस्मित होकर कहा || उन्होंने गरजती हुयी आवाज में फिर कहा अब मुझे बेवकूफ मत बनाओ मैंने सब समझ लिया है तुम अपनी रासलीला लिखी है कहानी नहीं | अब मै समझ चुका था यह सब क्यों हो रहा है | उनको गलत फहमी कहानी की वजह से हो रही है |
मैंने समझाया अरे ये तो एक कहानी मात्र है केवल कल्पना | पर वो मानाने को तैयार न थी | वो तो कहे ही जा रही थी आज तक मुझे अँधेरे में रखा | रोज लेट आते थे घर आज पता चल गया कहा रहते थे | कहते मै तो सिर्फ तुम्हारा हूँ और केवल तुम्ही से प्यार करता हूँ | सब झूठ बोलते थे | वह मुझ पर इल्जाम पर इल्जाम लगाये जा रही थी और मै बेचारा वक्त का मारा चुपचाप खड़ा सुनाने के अलावा कुछ नहीं कर प् रहा था |
अगर इतना ही प्यार है उस चुड़ैल से तो क्यों लायें मुझे अपने घर | उसी से विवाह क्यों नहीं किया | इतने में बच्चा रोने लगा पर मै हिम्मत नहीं हो रही थी की उसको भी चुप कराऊँ | मानो मै सामर्थ्य हीन हो गया था और श्रीमती की का भासन अभी भी बंद नहीं हुआ था | मै जा रही हूँ अपनी माँ के घर अब लाओ उस नागिन को रखो अपने घर में | मै अब यहाँ एक पल भी रहना नहीं चाहती | पैकिंग तो उन्होंने पहले से ही कर के रखी थी |
बैग उठाया और चल दी | मैंने रोकने का प्रयाश करना चाहा पर मानो मेरे हाथ पैर के साथ साथ मेरी जुबान भी सुन्न हो चुकी थी | मै हिल तक न सका | फिर मुझमे यकायक कुछ जान आयी | और मै मेनगेट तक पहुंची अपनी पत्नी को को कंधे पर हाथ रखकर रोका और और कहा मुझपर विश्वास करो मै सच कह रहा हूँ | वो सिर्फ एक कहानी है |
अच्छा कहानी है मुझे बेवकूफ समझते हो क्या | तुमने वही लिखा जो तुमने कालेज में किया | सबकुछ काल्पनिक कैसे हो सकता है दोस्तों के नाम कालेज का नाम और उस ………… |अब तो झूठ मत बोलो | अब मेरे पास कोई चारा नजर नहीं आ रहा था विश्वाश दिलाने का | लेकिन एक उपाय था | वो भी ट्राई करके देख लेता हूँ | और वो उपाय था मेरा बच्चा जिसको सामने करके ही मै विश्वाश दिला सकता था | जो काम मैंने जीवन में कभी न करने की कसम खाई थी | वो काम आखिर मुझे करना ही पड़ा | अपने बच्चे की कसम खानी ही पड़ी मुझे | मैंने जैसे ही कसम खाई वो मुड़ी और मुझसे लिपट कर जोर जोर से रोने लगी | मै जानती हूँ आप अपने बच्चे की झूठी कसम नहीं खा सकते है |
आखिर में मै अपना घर बचने कामयाब हो तो गया | लेकिन फिर मैंने जीवन फिर कभी कहानी न लिखने का द्रण संकल्प किया | और उस कहानी को फाड़ कर जला दिया
अब मेरी समझ में आ गया था की कहानी या कुछ भी लिखना कितना कठिन है

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