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गाँधी जी ईर्ष्यालु और हिंसक थे!

सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
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क्या मोहनदास गाँधी देशभक्त थे ???
आज मैं आपके सामने एक ऐसा तथ्य रखने जा रहा हूँ जिससे गाँधी की असलियत आपके सामने आ जाएगी ।
जितना सच ये है कि गाँधी जी देश को स्वतंत्र कराना चाहते है उतना ही ये भी सच है की इसका श्रेय भी खुद ही लेना चाहते थे और यही एक कारण है था कि गाँधी जी गरम दल के स्वतंत्रता सेनानियों बोस, आजाद, भगत, सुखदेव, राजगुरु आदि से इर्ष्या का भाव रखते है जो इतिहास की एक घटना से आपके सामने रखता हूँ ।
घटना 1930-31 की है भगत सिंह राजगुरु सुखदेव असेम्बली में बम फेंकने के आरोप में जेल में थे और उन्हें फांसी की सजा का ऐलान हो चूका था । संयोंगवश गाँधी जी भी उस समय सविनय अवज्ञा आन्दोलन छेड़े हुए थे । और अंग्रेजों ने उन्हें भी पकड़कर जेल में डाल रखा था । इन दो आन्दोलनो से अंग्रेज दबाव थे क्योंकि पुरे भारत में स्वतंत्रता की अलख भगत सिंह ने असेम्बलू में बम फेंककर और अदालत में जोरदार बयान देकर जगा दी थी । देश गाँधी को छोड़कर भगत सिंह कइ जयजयकार कर रहा था । गाँधी जी ने अपने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को खतरा महसूश किया । और उधर अंग्रेज भी परेशान थे ।
अंग्रेज समझते थे कि गाँधी महत्वकांक्षी है क्यों न उसे अपनी तरफ मिलाकर भगत सिंह के बवंडर जो समाप्त कर दिया जाये । और इसी मंसूबे के साथ अंग्रेजो ने गाँधी को गुप्त शर्तों के साथ 26 जनवरी 1931को जेल से रिहा कर दिया । गाँधी जी ने भी उन गुप्त शर्तों का मान रखते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के मना करने के बावजूद अंग्रेज इरविन के साथ समझौते की मेज पर बैठे । जहाँ गाँधी ने अपनी रिहाई के
उपकार के बदले में अंग्रेजों की कुछ ऐसी शर्तें मान लीं जो देश और स्वतंत्रता सेनानी दोनों के लिए घातक थी ।
इस समझौते की शर्तें निम्नलिखित थीं-
गाँधी द्वारा रखी गई शर्ते –
1-कांग्रेस व उसके कार्यकर्ताओं की जब्त की गई सम्पत्ति वापस की जाये।
2-सरकार द्वारा सभी अध्यादेशों एवं अपूर्ण अभियागों के मामले को वापस लिया जाये।
3-हिंसात्मक कार्यों में लिप्त अभियुक्तों के अतिरिक्त सभी राजनीतिक क़ैदियों को मुक्त किया जाये।
4-अफीम, शराब एवं विदेशी वस्त्र की दुकानों पर शांतिपूर्ण ढंग से धरने की अनुमति दी जाये।
5-समुद्र के किनारे बसने वाले लोगों को नमक बनाने व उसे एकत्रित करने की छूट दी जाये।
महात्मा गाँधी ने कांग्रेस की ओर से निम्न शर्तें स्वीकार कीं-
1-सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ स्थगति कर दिया गया जायेगा।
2-द्वितीय गोलमेज सम्मेलन’ में कांग्रेस के प्रतिनिधि भी भाग लेंगे।
3-पुलिस की ज्यादतियों के ख़िलाफ़ निष्पक्ष न्यायिक जाँच की मांग वापस ले ली जायेगी।
4-नमक क़ानून उन्मूलन की मांग एवं बहिष्कार की मांग को वापस ले लिया जायेगा।
गाँधी जी द्वारा अंग्रेजों के सामने रखी गई तीसरी शर्त को यदि ध्यान से पढ़ें तो पता चल जायेगा कि गाँधी ने जानबूझकर भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी से नहीं बचाया । यदि वे चाहते तो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सभी बंदियों को छुड़ा सकते थे लेकिन उन्होंने अपने ईर्ष्यालु स्वभाव के कारण सिर्फ और सिर्फ अपने लोंगो को ही बचाया ।
उन्होंने न केवल इन लोंगों को मरने दिया अपितु सविनय अवज्ञा को भी वापस ले लिया जिस कारण देश को 10-15 वर्ष और अंग्रेजों के जुल्म सहने पड़े ।
ये तो महज एक घटना है इतिहास में ऐसी कई घटनाएँ भरी पड़ी हैं जो गाँधी को एक्सपोज करती हैं ।और उनपर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं ।

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