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मानवतावादी दिखने में ये मूर्खता क्यों?

सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
सौरभ द्विवेदी "स्वप्नप्रेमी"
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धर्मनिरपेक्ष और मानवतावादी बनने के चक्कर में कुछ लोग इतने आगे निकल जाते हैं कि एक दिन आप अपनी माँ से ही कह बैठते हैं कि तुमने मुझे जन्म देकर कोई अहसान नहीं किया है वो तो तुमने अपनी शारीरिक इच्छापूर्ति के लिए मुझे जन्म दे दिया ।
ऐसे लोग हर किसी को गलत साबित करके केवल स्वयं को ही श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैं और इसका निरंतर प्रयास करते हैं इसी क्रम में वो ईश्वर और उसके अवतार तथा उनके अवतारों पर भी अपने तरकश के तीर चलाते है । ऐसा केवल आज के युग में ही नहीं हो रहा है सभी युगों में ऐसा होता है । कभी इनका नाम रावण हुआ कभी कंस कभी हिरण्यकश्यप तो आज के युग में रामपाल जैसे ढोंगियों के रूप में हमारे सामने हैं ।
और केवल रामपाल ही क्यों आज के समय में हजारों लाखो ऐसे लोग हैं जो हमारे पूर्वजों ईश्वर के अवतारों पौराणिक कहानियों में कमियां ढूंढते मिल जायेगें । जैसा मैंने पहले भी लिखा की ये तो अपने माता पिता में भी दोष निकालने में पीछे नहीं है ।
ऐसे लोग सोशल मीडिया पर भी आपको मिल जायेंगे जिन्हें खुद के पिताजी के पिताजी का नाम शायद न मालूम हो लेकिन किसी अति प्राचीन ग्रन्थ में कमिया निकालते मिल जायेंगे ।
कोई भी ग्रन्थ कोई भी साहित्य उस समय की परिस्थियों के हिसाब से लिखा जाता है हो सकता है आज के समय में उसमें कुछ खामियां निकाली जा सकें लेकिन जिस समय उसको लिखा गया होगा उस समय उसमें कोई कमी नहीं रही होगी ऐसा मेरा मानना है ।
वैसे तो किसी भी धार्मिक सनातन ग्रन्थ में कमी निकाल पाना असंभव है क्योंकि कोई कमी खामी उनमे है ही नहीं । लेकिन क्योंकि हमारे धर्म का इतिहास सनातन है और इसमें कई मत मतान्तर पाये जाते हैं अतः कई विचारकों लेखकों के मतों में भी भिन्नता होती चाली गई ।
अब अगर मूर्खतावश होकर कोई व्यक्ति अपने आपको धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी साबित करने के चक्कर में उन धर्म ग्रंथो पर टिप्पड़ी करके सुर्खियां बटोरकर रामपाल बनना ही चाहता है तो उसकू अपनी मूर्खता है ।
जय सनातन! जय हिंदुत्व!
#स्वप्नप्रेमी

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